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एक रफ़्तार समय संचार

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बिहार सरकार की नीतियों की विफलता और जनता का आक्रोश: एक गहन विश्लेषण

भारत का एक प्रमुख राज्य, अपने सामाजिक-आर्थिक विकास में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। राज्य की सरकार द्वारा किए गए कुछ बड़े कदमों के बावजूद, कई नीतियां और योजनाएं विफल साबित हुई हैं। जनता में इन विफलताओं को लेकर गहरा असंतोष है, और विभिन्न नकारात्मक पहलू सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं। इस लेख में, बिहार सरकार के कुछ प्रमुख नकारात्मक पहलुओं पर तथ्यों और प्रमाणों के साथ चर्चा की गई है।

1. शराबबंदी का विफल होना

बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। इसका उद्देश्य सामाजिक सुधार करना और महिलाओं पर हो रहे घरेलू हिंसा को कम करना था। हालांकि, यह नीति बड़े पैमाने पर विफल रही है। शराबबंदी के बावजूद, राज्य में अवैध शराब का धंधा फल-फूल रहा है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, बिहार में शराबबंदी के बावजूद 2022-23 में 90,000 से अधिक शराब से जुड़े अपराध दर्ज किए गए। शराब की अवैध बिक्री और तस्करी का धंधा तेजी से बढ़ा है, और इस दौरान कई मौतें जहरीली शराब के सेवन से भी हो चुकी हैं। उदाहरण के लिए, 2022 में बिहार के कई जिलों में जहरीली शराब से 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। इसके बावजूद सरकार अवैध शराब के कारोबार पर नियंत्रण नहीं कर पाई है, जिससे जनता में भारी आक्रोश है।

2. अंग्रेजी नशा का प्रचलन और नशे की बढ़ती लत

शराबबंदी के बाद बिहार में अंग्रेजी नशा और अन्य नशीली दवाओं का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। युवाओं के बीच गांजा, हेरोइन, ब्राउन शुगर और अन्य नशीली वस्तुओं का उपयोग बढ़ गया है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में नशे के मामलों में पिछले 5 वर्षों में 30% की वृद्धि दर्ज की गई है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में नशे के अवैध कारोबार का प्रसार हो रहा है, खासकर युवा वर्ग इस संकट से जूझ रहा है।

शराबबंदी के बाद नशीली दवाओं का बढ़ता उपयोग एक गंभीर सामाजिक समस्या बन गया है। नशे की वजह से अपराध, चोरी, और घरेलू हिंसा के मामलों में भी इजाफा हुआ है। बिहार सरकार इस मुद्दे पर सख्ती से कार्रवाई करने में विफल रही है, जिससे जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

3. योजनाओं का सही जरूरतमंदों तक न पहुंचना

बिहार में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा, आयुष्मान भारत योजना, और जन धन योजना आदि का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। योजनाओं का लाभ सही जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है। सरकारी रिपोर्ट्स और मीडिया के अनुसार, भ्रष्टाचार और बिचौलियों के कारण कई पात्र लाभार्थियों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।

उदाहरण के लिए, मनरेगा के तहत, 2022-23 में बिहार में 25% से अधिक मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं मिला। वहीं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाखों लोगों को घर मिलने का वादा किया गया था, लेकिन 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अभी भी 35% लाभार्थियों को घर नहीं मिला है। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में जनता सरकार के प्रति नाराज है, और सरकार पर विश्वास की कमी महसूस करती है।

4. शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हालत

बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल चिंताजनक है। सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति, शिक्षकों की कमी, और आधारभूत सुविधाओं का अभाव राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बड़ी समस्याएं हैं। नेशनल अचीवमेंट सर्वे (NAS) 2021 के अनुसार, बिहार के सरकारी स्कूलों के बच्चों की शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट आई है। राज्य के कई जिलों में छात्रों की संख्या के मुकाबले शिक्षक बहुत कम हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

बिहार सरकार ने ‘बिहार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना’ जैसी योजनाओं की शुरुआत की थी, लेकिन इनमें भी कई खामियां देखने को मिली हैं। छात्रों को समय पर लोन नहीं मिल पाता, और इसके कारण कई गरीब विद्यार्थी उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इस मुद्दे पर सरकार का उदासीन रवैया छात्रों के बीच गहरी नाराजगी का कारण है।

5. स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति

बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक है। अस्पतालों में सुविधाओं की कमी, डॉक्टरों की भारी कमी और उपकरणों का अभाव आम बात हो गई है। नेशनल हेल्थ मिशन की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में प्रति लाख जनसंख्या पर मात्र 6.3 डॉक्टर उपलब्ध हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी बिहार सरकार की तैयारियों और स्वास्थ्य सेवाओं में खामियां सामने आईं। ऑक्सीजन, दवाओं, और बेड की कमी ने सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए।

इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष्मान भारत योजना के तहत भी सही लाभार्थियों को इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती। चिकित्सा सुविधाओं की कमी से ग्रामीण जनता में गहरी निराशा है, और लोग समय पर इलाज न मिलने से अपनी जान गंवा रहे हैं।

6. रोजगार और बेरोजगारी का संकट

बिहार में बेरोजगारी की समस्या काफी गंभीर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, 2023 में बिहार की बेरोजगारी दर 10.3% थी, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। राज्य में औद्योगिक विकास की कमी और सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता की कमी ने युवा वर्ग में भारी आक्रोश पैदा किया है।

बेरोजगारी की वजह से हर साल हजारों युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। सरकार द्वारा चलाए गए ‘कौशल विकास योजनाओं’ का भी सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो सका, जिससे नौजवानों को रोजगार प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है।

7. अपराध और कानून व्यवस्था की विफलता

बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति भी चिंताजनक है। NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में आपराधिक घटनाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। राज्य में हत्या, लूट, अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। खासकर महिला सुरक्षा और बच्चों के प्रति अपराध के मामलों में राज्य में बढ़ोतरी देखी जा रही है।

अपराधियों पर कार्रवाई में पुलिस और प्रशासन की उदासीनता ने स्थिति को और खराब कर दिया है। इससे जनता के बीच सरकार के प्रति नाराजगी और असंतोष बढ़ता जा रहा है।

निष्कर्ष

बिहार सरकार की नीतियों और योजनाओं में कई खामियां सामने आई हैं, जिनका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, शराबबंदी, और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर सरकार की विफलता जनता के गहरे आक्रोश का कारण है। सरकारी योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन न होने से बिहार की जनता के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। इन समस्याओं का समाधान अगर जल्द नहीं हुआ, तो राज्य में सरकार के प्रति नाराजगी और भी बढ़ सकती है।


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